टूटा सपना- Broken Dreams

मेरे गाँव बगही में बच्चे-बच्चियों की पढ़ाई रुक गई है। कोविड -19 महामारी के फैलने के डर से सरकार ने तालाबंदी कर दी और मार्च महीने से सारे स्कूल बंद कर दिए। सबकी हालत अजीब हो गई है।  बच्चों का तो कहना क्या ! स्कूल नहीं खुला है तो सारे बच्चे भटक रहे हैं। उनके पास समय बहुत है।  ऐसे में वे क्या करेंगे ? न उनको कहीं जाने को है, न कोई उनके घर पर आता है।  यही कारण है कि बच्चे यहाँ वहाँ घूम रहे हैं।  एक दूसरे के साथ खेल रहे हैं। कोई रोक ना कोई टोक।  एक दूसरे से जरूरी दूरी का पालन भी नहीं कर रहे हैं। कोरोना वायरस का खतरा बढ़ता जा रहा है। बच्चे को यह भी नहीं पता है कि क्या सावधानियाँ बरतनी हैं। बच्चे के मम्मी पापा भी पढ़े-लिखे नहीं हैं कि वे खुद अपने बच्चों को पढ़ा पाएँ।  और अभी तक जो पढ़ा था बच्चे वह पढ़ाई भी भूल रहे हैं।

मैं सोचने लगी कि सरकार ने क्या सोचकर तालाबंदी की है। स्कूल-कॉलेज सबको बंद कर दिया है। समूह में रहना मना किया है जो कि हमारे लिए बहुत जरूरी है। सरकार चाहती है कि हम इन नियमों को मानें, लेकिन ये सारी बातें बच्चों को कौन बतानेवाला है।  तालाबंदी के पहले स्कूल जाने से कुछ सीख मिलती थी। सर मारें नहीं, इसके डर से बच्चे नहाकर साफ-सुथरा होकर स्कूल जाते थे। अब तो यह नहीं हो रहा है। बच्चे के मम्मी-पापा के पास महामारी से बचने की सही जानकारी नहीं है, उसका कोई स्रोत नहीं है। बारिश के पानी में बच्चे खेल-कूद रहे हैं। उनको सर्दी-खाँसी, बुखार हो जा सकता है।  यही सब कोविड बीमारी का लक्षण भी है।  अब इस कोविड-19  महामारी में क्या सावधानियाँ बरतनी हैं, इसे बताने कौन आएगा ?

समय गुजर रहा था, लेकिन बीमारी खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी।  लॉकडाउन बढ़ता जा रहा था।   फिर कुछ दिन के बाद खबर आई कि बहुत सारे स्कूलों में मई महीने से ऑनलाइन क्लास शुरू हो जाएँगे।  ऑनलाइन क्लास मतलब कंप्यूटर और मोबाइल फोन से पढ़ाई होगी।  मैंने टीवी पर सुना, अखबार में भी पढ़ा।  सब लोग आपस में चर्चा करने लगे कि कैसे होगा यह।  पता चला कि सिर्फ प्राइवेट स्कूलों में ही ऑनलाइन क्लास संभव है।  जो सरकारी स्कूल है उसमें तो सुविधा ही बहुत कम है।  लैपटॉप तो बगही में अभी तक किसी  बच्चे  के पास नहीं हैं।  मोबाइल भी है तो बच्चों के पास नहीं।  उनके माता-पिता या भाई का है। ऑनलाइन क्लास के लिए किसी तरह 2 घंटे उनको मिल जाता है।

बच्चों की ऑनलाइन क्लास बड़ी समस्या थी।  मैं उनके झमेले में उलझी हुई थी।  इसके साथ मई महीने में फैट संस्था का अभियान कोरोना नहीं, करूणा शुरू हो गया था। ज्यों ज्यों हम हालत को समझते जा रहे थे, त्यों त्यों मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थीं। आखिर हम गरीब के साथ ऐसा क्यो होता हैं। मैं खुद एक गरीब परिवार से हूँ। बहुत कठिनाई से यहाँ तक पढ़ पाई हूँ। मेरा सपना है पढ़ाई पूरी करके नौकरी करना।  यही वजह है कि मुझसे इन सारे बच्चों का दुख देखा नहीं जा रहा था। 

बगही का प्राइवेट स्कूल बहुत बड़ा है।  उसमें ऑनलाइन   पढ़ाई शुरू हुई थी। उसमें सभी जाति के बच्चे-बच्चियाँ जाते थे पढ़ने। यह नहीं है कि जिनको नीची जाति का माना जाता है वह धनी नहीं है।  मेरे गाँव में जो नीच जाति के लोग हैं वे धनी हैं। उनके बच्चे प्राइवेट स्कूल में पढ़ते हैं। वैसे बात गरीब और धनी की भी उतनी नहीं है।  मेरे गाँव में बस खाने भर ही जो कमा सकता है, वह भी अपने बच्चों को प्राइवेट में पढ़ाना चाहता है।  होता यह है कि जो थोड़े  गरीब हैं उनके यदि एक लड़का एक लड़की है तो वे अपने बेटे को प्राइवेट में भेज देते हैं।  वे एक बच्चे का  ही पैसा जुटा पाते हैं तो बेटी को सरकारी स्कूल में भेजते हैं।  लेकिन ऐसा नहीं है कि मेरे गाँव में प्राइवेट स्कूल में लड़की नहीं पढ़ती है। पढ़ती है, धनी लोग की।  लड़का धनी-गरीब सबका ज्यादातर प्राइवेट स्कूल में ही पढ़ता है।  लेकिन इस लॉकडाउन में प्राइवेट स्कूल के गरीब घर के बच्चे अधिक परेशान हैं।  बच्चे के पास फोन और इंटरनेट  न होने से उनकी ऑनलाइन क्लास छूट रही है।  उनकी हाज़िरी नहीं बन रही है।  बाकी गरीब घर के काफी बच्चे बच्चियाँ जो  सरकारी स्कूल में पढ़ते थे उनके हाल के बारे में सोचिए।  प्राइमरी स्कूल की छोड़िए, सरकारी मध्य बिद्यालय बगही में भी ऑनलाइन पढ़ाई नहीं हो रही थीं।  इस समस्या से बच्चों के परिवार  वाले बहुत ज्यादा चिंतित हैं।  वे सोच रहे हैं कि अब हमारे बच्चे कैसे पढ़ेंगे। वे लोग बक्सर जाकर दिहाड़ी पर मजदूरी करते हैं।  लॉकडाउन में उस पर भी आफत आ गई है।  वे खेतों में भी काम करते हैं, मगर अभी वह भी नहीं मिल रहा है।  उन्होंने सपना देखा था कि बच्चे पढ़-लिख कर अच्छी ज़िंदगी जी सकेंगे।  अभी बच्चे के लिए ऑनलाइन क्लास का इंतज़ाम नहीं हो पा रहा है तो कैसे क्या होगा!

मैं सोचने लगी कि जब मेरा गाँव ही स्वस्थ नहीं रहेगा तो मैं या मेरा परिवार कैसे स्वस्थ रह पाएगा।  मैं परेशान हो रही थी कि कैसे ये सारे बच्चे घर से निकलना कम करेंगे। लॉकडाउन की शुरुआत में जब बच्चे घूमते रहते थे तो उस समय उनको देखकर मैं उतना नहीं चिंता करती थी।  जबसे फैट संस्था के अभियान की मीटिंग में जुड़ी तो लगा कि साफ-सफाई से रहने, ज्यादातर लोग से दूरी बनाए रखने की सावधानी सबको रखनी है। खुद तो यह सब करना है, लेकिन दूसरों को भी बताना है। उसी समय मेरे   दिमाग में यह आया कि महामारी से बचने की सावधानी के बारे में हम बच्चों के के माता-पिता को बता सकते हैं।

लेकिन बच्चों तक बात कैसे पहुँचाई जाए? वे कैसे अपनी पढ़ाई जारी रखेंगे? कैसे मेरी बात मानेंगे? ऐसे ही तो कोई बच्चा किसी की बात नहीं मानता।  या तो वह अपने परिवारवाले की बात मानता है या फिर टीचर की। तभी मेरे मन में ख्याल आया कि मैं बच्चों को पढ़ाना ही शुरु कर देती हूँ। हम क्यों ना अपने घर पर कुछ बच्चों को पढ़ाएँ। बच्चे पढ़ेंगे तो उनको इतना समय ही नहीं मिल पाएगा कि वे बेकार में घूमें। हम महामारी में इधर-उधर आने-जाने के खतरे के बारे में बच्चों को बताएँगे तो उसका भी असर होगा। 

मैंने ठाना कि हाथ पर हाथ रखकर बैठने से कुछ नहीं होगा।  कोविड-19 महामारी से जुड़े सारे नियमों को ध्यान में रखते हुए मैं घर से निकली।   सबसे पहले अपने पड़ोसी के सारे बच्चों से मैंने बात की।  उनके पास मास्क नहीं था तो मैंने उन सबके लिए घर पर ही मास्क  सिला।  मास्क सिल लेने के बाद मैंने सारा बच्चों में बाँट दिया।  उनको समझाया कि मास्क लगाकर आपलोग मेरे घर पर आकर पढ़ सकते हो। सुनने भर की देर थी, सारे बच्चे बहुत खुश हुए। और मेरे घर पर बारी बारी से 5-5 बच्चे समूह में आने लगे,  एक घंटे की पढ़ाई के लिए। इससे अधिक समय मेरे पास नहीं था कि 5-5  के दूसरे नए समूह को मैं चला पाऊँ। कारण अपनी पढ़ाई भी करनी है, घर का भी काम करना है, मीटिंग भी करनी है।

मुझसे  से एक बड़ी बहन है जिसने 10 वीं तक पढ़कर पढ़ाई छोड़ दी है। वह इसलिए कि बचपन से ही बहुत बीमार रहती थी। उसकी अभी भी दवा चल रही है। उसका आगे  पढ़ने का मन है। एक मेरी छोटी बहन है। उसने इस बार 10 वीं पास की है। उसकी पढ़ाई अभी जारी है। मैं भी BA part 1 मैं पढ़ती हूँ। फिर मैंने अपनी दोनों बहनों से बात की और बोली कि आप लोग भी एक-एक  घंटे बच्चे को पढ़ाओ जिससे आपलोग का भी मन लगेगा और पढ़ाई भी होगी।  फिर क्या था ! हम तीनों बहनों ने मिलकर बच्चे बच्चियों को पढ़ाने के साथ साथ कोविड-19 से जुड़ी जानकारी देना आरंभ कर दिया।  जो मैंने फैट की जूम मीटिंग से सीखा, वह सारा कुछ बच्चों को  सिखाने लगी।

बच्चों ने लॉकडाउन की ऐसी की तैसी कर रखी थी।  कुछ बच्चे मेरी बात मानते थे, और कुछ बच्चे पढ़ाई करके जाने के बाद भी वही काम करते थे। बाहर बहुत सारे बच्चों से मिलना, खेलना, बारिश में भीगना सारा कुछ।  फिर हम बहनों ने अपने मोबाइल में बहुत बच्चे बच्चियों को न्यूज़ भी दिखलाया। चारों तरफ से खबर आ रही थी कि बीमारी फैलती जा रही है।  दिखलाया कि कोरोना संक्रमित लोगों को अलग थलग कैसे रखा जाता है, उनके पास कोई आता-जाता भी नहीं है। बच्चों को समझाया कि यदि आपको कोविड का संक्रमण हो जाए तो आपलोग के पास भी कोई नहीं रहेगा।  बेहतर है कि आपलोग पहले से सावधान रहो। बच्चों को समझाना थोड़ा मुश्किल था, लेकिन असंभव नहीं।  कई बार बच्चे बहुत आसानी से बातें मान जाते हैं। हमने उनको खौफ दिखलाया कि क्या आपलोग भी यही चाहते हो कि हमारे गाँव के लोग या आपलोग भी बीमार हों जाएँ, हर रोज सुई पड़े। 

सुई में ख़ास बात यह है कि सारे बच्चे सुई से बहुत डरते हैं। पहले तो हम बहुत परेशान थे कि क्या बच्चे हमारी बात सुन पाएँगे। या मान पाएँगे।  पर हमने हिम्मत नहीं हारी और बच्चों को बहुत समझाया।  कुछ दिक्कत ज़रूर हई, लेकिन बच्चे मान गए।  सारे बच्चे सारी बातें ध्यान से सुनते थे और आपस में ध्यान भी रखते थे। जो  कोई बच्चा इन नियमों को नहीं मानता तो जब दूसरे बच्चे पढ़ने आते थे तो मुझसे या मेरी बहनों से बताते थे।  तब हम उस बच्चे को दुबारा समझाते थे। कभी कभी डांटते भी थे।  धीरे धीरे सारे बच्चे साफ-सफाई से रहने लगे।  उनकी लापरवाही बंद हो गई। यह सब एक दिन में नहीं हुआ।  बच्चों को समझाते-समझाते  महीना भर बीत हो गया था। ।

बच्चों के मम्मी-पापा बहुत खुश थे। कि हमने उनके बच्चों को पढ़ाया।  उनमें से कुछ बच्चों की माँ ने आकर कुछ पैसे भी दिए। बोलीं कि तुम भी तो मेहनत करती हो तो मैं अपनी खुशी से यह पैसे तुम्हें दे रही हूँ। मना मत करो। जो बहुत गरीब हैं वे पैसे नहीं दे पाते हैं। फ़िर भी बच्चों को हम तीनों बहनें मिलकर पढ़ाती हैं। दस बच्चों की मम्मी 50 रुपए देती हैं।  महीने के 50 रूपए।  इस हिसाब से मुझको एक महीने में 500 रुपया मिल जाता है। इस पैसे से हमलोग अपनी कॉपी, किताब, कलम खरीद कर पढ़ पाती हैं।   छोटी-मोटी अपनी जरूरत भी पूरी कर लेती हैं।

लॉकडाउन ख़त्म हुआ।  लेकिन समय के साथ पढ़ाई की यह समस्या हल नहीं हुई है। मुझे डर है कि जो मेरी बहन और उनकी दोस्त है उनका सपना अधूरा ना रह जाए। दोनों कॉमर्स लेकर कॉलेज में पढ़ना चाहती थीं। बैंक में काम करना उनका सपना था। लेकिन इस कोविड-19 ने सब चौपट कर दिया। कॉमर्स पढ़ने के लिए गाँव से 17 किलोमीटर दूर के शहर में जाना पड़ता है। लॉकडाउन का असर अब तक सब जगह है।  लगभग सारी बस बंद हो चुकी है। कोई सवारी नहीं मिलती है। इतना पैसा नहीं है कि अकेले गाड़ी करके रोज़ जाएँ।  उनको चिंता है कि अब उनका पूरा साल बर्बाद हो जाएगा। ऐसे में क्या उपाय है ? मेरी बहन और उसकी दोस्त आर्ट्स लेकर घर पर ही पढ़ाई कर रही हैं। दोनों दुखी हैं, अपने सपने को पूरा करने के लिए वे छटपटा रही हैं।

 

मैं सोचती हूँ कि मेरी बहन और उसकी दोस्त अकेली नहीं हैं।  उनके अलावा न जाने कितने बच्चों का सपना टूटा होगा इस कोविड-19 महामारी में। आखिर ऐसा क्यों ?

 

The studies of the children in my village, Bagahi, has stopped।  The government has imposed lockdown due to Covid-19 pandemic and since March all the schools have been closed down।  Everybody’s circumstances have changed।  What to say about the children! They are going astray।  They have plenty of time, what would they do? Neither can they go anywhere nor anyone can visit their house।  That’s the reason why they are loitering around, playing with each other।  No one can stop them; they are not even maintaining the necessary social distancing।  The danger of coronavirus is constantly increasing. Children themselves don’t know what precautions they should take. The parents are also uneducated hence they are unable to teach them. The children are forgetting about what they have studied.

I wonder what the government thought while declaring lockdown. They closed down schools and colleges. Government has put a ban on public gatherings, but that is very essential for us. Government wants us to follow these rules but who will explain all this to the children that they have to abide by. Before the lockdown when children used to go to the school at least they learnt something. With the fear of being punished by the teacher they would bathe and get ready to go to the school. Now this is not happening. Parents do not have the right knowledge about the precautions to be taken. Children are playing in the rain, catching cold, cough and fever, and these are also the symptoms of Covid-19. Now who will come and tell us about the precautions one should take during the pandemic?

As time passes, the pandemic refuses to end and the period of lockdown keeps extending. Then the news came that in many schools on-line classes will start from May. This means, we have to study via computers or mobile. I heard on T.V. and read in the newspaper about it, everybody was discussing it’s possibilities. Then we heard that this is possible only for the private schools. There is little facility for this in government schools. No child in bagahi village has a laptop. The mobile is with the parents or elder brother and not with the children. On-line classes would mean at least 2hours.

On-line classes for children was a great problem. I was totally engrossed in their problem. Along with this , in the month of May, FAT organization  started their campaign ‘Corona nahi Karuna’. As we were trying to grasp the reality of the situation my anxiety kept increasing. Why does it always happen with us poor people? I am from a poor family and with great difficulty I did my education. My dream is to complete my studies and get a job. That’s the reason why I cannot bear to see these children in problem.

The private school in Bagahi is quite big. On-line teaching had started there. Children of all castes used to study there. It is not that those who are from low caste are not rich . In my village low caste people are also rich. Their children study in private school. Actually, in my village, it is not about rich or poor; everyone who is able to earn a decent living wants to send their child to private school. Those who are a little poor and have a son and a daughter, send their son to the private school and the daughter to the government school; they can afford to send only one child to the private school. In my village daughters do go to private school but the rich man’s daughters only.

During this lockdown, the  children of poor families studying in private school  were also facing trouble . Unavailability of mobile or internet connection is enabling them to attend on-line classes. They are running short on attendance. On the other hand ,you can imagine the condition of children in government school! Leave  the primary classes, even the middle class students in Bagahi were not having on-line classes. The families are also worried thinking how their children will continue their studies. The men and women from the village go to Buxar to work as daily wage earners. Now, that has stopped. Some worked in the fields, now that work is also not available. They had dreamt of their children getting education and leading a good life. They are worried now, how things will work out as they are unable to arrange on-line classes for their children.

 

I thought , if my village cannot stay healthy then how can me and my family will. I was getting worried thinking how can I make these children stop going out of the house. At the beginning of the lockdown when I saw these children loitering I was not that worried. Since I associated myself with the campaign started by FAT organization, I realised the necessity of cleanliness and maintaining social distance. We should follow this and also bring the same awareness among others. At that moment I thought the parents of the children must be made aware of this.

 

But how to bring this information to the children? How should they continue their study? How will they listen to me? Children don’t listen to anyone except their family or their teacher. Then I thought of teaching the children; why not teach some children at home only. Once children start studying they will have no spare time to loiter around. If we tell them the dangers of loitering around during the pandemic, that will have some effect.

 

I realised it is of no use to sit at home; I took all the precautions relating to Covid-19 and stepped out of the house. Firstly, I spoke to the  children in my neighbourhood . They did not have masks. So I stitched masks at home and distributed them among all the children. I told them to wear it and come to my house to study. On hearing this , they were elated. Children started coming to my house in batches of 5 each to study for one hour. I could not take more batches as I had to do my own studies, do household chores and attend the meeting.

 

I have an older sister who left her studies after 10thbecause she often remained ill. She is still on medication but she wants to study further. I also have a younger sister who just cleared her 10th and her studies are continuing. I am studying in B.A.(Part I). I asked both my sisters to spare one hour each to teach children. After that , all three of us , along with teaching imparted knowledge about Covid-19. Whatever I learnt from Zoom-meetings conducted by FAT organization, I passed it onto the children.

Children had not adhered to the lockdown rules. Some followed but others just went on with their old habits like meeting friends, playing in the rain,etc. Then our sisters showed news to the children on our mobiles. The news of Corona Virus spreading rapidly was coming from all over. We showed them how infected patients were isolated and no one could go near them. We told them that if they were infected by Covid, no one would come near them, that’s why it is better that they take precautions beforehand. It was difficult to make the children understand but it was not an impossible task. Sometimes children understood it easily. We scared them by saying, “Do you want our villagers or you to get infected and then everyday get injected. The best part about injections is that all children are scared of it. Earlier we were worried, if children would listen to us or not; we did not lose hope and tried our best to make them understand. Initially we faced some problems but then they understood. All the children listened attentively and took all the precaution. Some children came to us and complained about those who did not follow the rules. We again and again tried to tell them, sometimes scolded them. Slowly all the children started taking care of their hygiene and also stopped loitering . This did not happen in one day, it took months. 

 

Parents were very happy that we taught their children. Some mothers paid us saying, “ You are also making efforts that is why I am paying you willingly. Do not refuse.” Those who were very poor could not pay. For 10 children a mother would pay Rs.50/-. In this way I earned Rs. 500/-a month. We would buy our own stationary and fulfil our own small needs.

Lockdown is over but the problem of education is not over. I am worried that my sister and her friend’s dream does not go unfulfilled. Both wanted to take up Commerce stream in college. Working in the bank is their dream. But this Covid -19 spoilt everything.. One has to travel 17 Kms. From our village to go to college to study Commerce. The effects of lockdown are still persisting. Nearly all the bus services have closed down. There is no other way to commute. We don’t have so much money as to take a cab every day. They are worried that their whole year will be wasted. What to do in such a situation? Now my sister and her friend have taken up Arts and are studying from home. They are eager to fulfil their dream.

Now I think that  my sister and her friend are not the only one,there are so many children whose dreams have been shattered due to this Covid-19 pandemic. Why did it happen?

Written by Priya Kumari (19), Buxar, Bihar

This article is part of an Livelihood Action Project of FAT with young girls from Bihar and

Jharkhand to enable them to become professional story writers. The training for story writting was done by Purwa Bharadwaj, and she edited and finalised the story in Hindi. The English translation of this story was done by an intern from TISS, Aqsa and final edits by Meetu Kapoor.